पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा से बदला माहौल, बस्तर में गूंजा हर-हर महादेव

नक्सल प्रभावित गीदम की धरती पर पहली बार गूँजी शिवभक्ति — आदिवासी अंचल में आस्था का ऐतिहासिक उदय

छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में, जहाँ कभी लाल सलाम की गूँज सुनाई देती थी, वहाँ आज पहली बार शिवभक्ति का ऐसा महापर्व सजा कि पूरा क्षेत्र हर-हर महादेव के उद्घोष से धधक उठा। जगदलपुर से 80 किलोमीटर दूर, नक्सल प्रभावित गीदम (दंतेवाड़ा) में किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित कथा वाचक द्वारा पहली बार 7 दिवसीय शिवपुराण कथा का वाचन न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह क्षेत्र की सामाजिक–सांस्कृतिक यात्रा में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ।

🚩 आदिवासी हृदय में पहली बार शिवभक्ति की गहरी धुन

इस कथा ने वह कर दिखाया, जो उस धरा ने दशकों से नहीं देखा था — आस्था का पुनर्जागरण, संस्कृति का पुनर्स्मरण और एकता की नई प्रतिध्वनि।

बचेली-बड़े बचेली, नारायणपुर, सुकमा और बीजापुर जैसे दूरस्थ इलाकों से शिवभक्त ट्रैक्टरों, जीपों, बसों और पिकअप वाहनों में सवार होकर कथा स्थल पर पहुँचे।
यही दृश्य बता रहा था कि शिवभक्ति एक नई ऊर्जा बनकर लोगों के जीवन में लौट रही है।

🌱 “पहली बार कथा सुनी… अब घर में टीवी लगाकर रोज कथा सुनूंगी”

नक्सल उन्मूलन अभियान ने इस क्षेत्र की किस्मत बदलनी शुरू कर दी है। जहाँ कभी बिजली का नाम भी नहीं था, अब कई घरों में विद्युत आपूर्ति हुई है और टीवी लगने लगे हैं।

एक आदिवासी महिला की आँखों में चमक थी—

“सुकमा क्षेत्र से पहुंची सेवती उक्का कहती है मैंने पहली बार कथा सुनी। अब घर में टीवी लगाऊंगी और रोज कथा सुनूंगी।” उनकी आवाज़ में मानो नई दुनिया में प्रवेश का उत्साह था।

🌿 गोंडी में श्रद्धा का पहला एहसास

एक अन्य महिला ने गोंडी भाषा में बताया—
“शिवपुराण में जो शक्ति छुपी है, उसका एहसास पहली बार हुआ… मैंने ‘श्री शिवाय नमस्तुभ्यं’ का स्टीकर खरीदा है, घर के चौखट में लगाऊँगी और हर दिन जल चढ़ाऊँगी।” जावांगा से पहुंची इस महिला ने कहा यहां निरंतर ऐसे कथा होना चाहिए। जिससे यहां धर्मांतरण रुकेगा

यह वाक्य केवल आस्था की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि उस सांस्कृतिक पुल का संकेत है जो कथा ने गोंडी परंपरा और शिवभक्ति को जोड़कर बनाया है।

🛕 बस्तर के प्राचीन शिव मंदिरों की महत्ता फिर जग उठी

स्थानीय नेताओं ने भी इस आयोजन को ऐतिहासिक बताया। एक भक्त ने कहा कि बस्तर में प्राचीन शिवस्थल जैसे

बत्तीसा शिव मंदिर, बारसूर के शिव मंदिर —आदि सदियों से विराजमान हैं, पर उनकी महत्ता से अब तक स्थानीय समुदाय पूरी तरह परिचित नहीं था। कथा के माध्यम से पहली बार आदिवासी समाज अपने ही इतिहास, अपने ही देवस्थलों की आध्यात्मिक शक्ति से रूबरू हुआ है।

🔱 लाल सलाम से हर-हर महादेव तक — परिवर्तन का महापर्व

कभी यह इलाका नक्सलवाद की छाया में घिरा रहता था।
आज वही धरती शिवभक्ति के नगाड़ों से थरथरा उठी है।

स्थानीय नेता के शब्दों में—
“जहाँ कभी लाल सलाम के नारे गूंजते थे, आज हर-हर महादेव गूंज रहा है। यह परिवर्तन ऐतिहासिक है।”

🙏 पंडित प्रदीप मिश्रा का आभार — आस्था के दीप से अंधकार में उजाला

पूरे आदिवासी अंचल ने पंडित प्रदीप मिश्रा और उनकी समिति का हृदय से आभार व्यक्त किया। घने जंगलों, कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और संवेदनशील सुरक्षा हालात के बीच इस कथा का आयोजन करना केवल धार्मिक प्रयास नहीं, बल्कि आस्था, साहस और समर्पण की मिसाल है। उन्होंने न सिर्फ कथा सुनाई, बल्कि शिवभक्ति की वह अलख जगाई जो आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र की पहचान बदल सकती है। उन्होंने आयोजक परिवार का भी आभार व्यक्त किया।

🌄 यह सिर्फ कथा नहीं, बस्तर की आध्यात्मिक क्रांति की शुरुआत है गीदम की इस कथा ने यह सिद्ध कर दिया कि—
आस्था का प्रकाश जब अंधेरे में जाता है, तो वह केवल विश्वास नहीं जगाता, भविष्य भी बदल देता है। दक्षिण बस्तर का यह आयोजन आने वाले समय में इतिहास के पन्नों पर दर्ज होगा—
एक क्षण, जब नक्सल प्रभावित क्षेत्र ने शिवभक्ति का मार्ग चुना।
एक क्षण, जब आदिवासी संस्कृति ने शिवपुराण से हाथ मिलाया।
एक क्षण, जब जंगलों में हर-हर महादेव की गूँज ने नई सुबह का स्वागत किया।

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